अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों मे एकाग्रचित करें

जनपत की खबर , 1379

लखनऊ।
आज नवरात्रि का दूसरा दिन है नवरात्रि के दूसरे दिन भगवती मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है साधक एवं योगी इस दिन अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके, स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं ब्रह्मचारिणी देवी, भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप हैं ब्रह्म का अर्थ है  तपस्या, तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया है इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता है नवरात्रि का दूसरा दिन भगवती ब्रह्मचारिणी की आराधना का दिन है श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं मंत्र इस प्रकार है...
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अपने पूर्व जन्म में जब मां ब्रह्मचारिणी, हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब नारद जी के उपदेश से उन्होंने भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया उन्होंने एक हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं उपवास के समय खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के विकट कष्ट सहे, इसके बाद में, केवल ज़मीन पर टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर तीन हज़ार वर्ष तक भगवान शंकर की आराधना करती रहीं और कई हज़ार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर व्रत करती रहीं पत्तों को भी छोड़ देने के कारण, उनका एक नाम 'अपर्णा' भी पड़ा इस कठिन तपस्या के कारण, ब्रह्मचारिणी देवी का पूर्वजन्म का शरीर एक दम क्षीण हो गया था उनकी यह दशा देख कर उनकी माता मैना देवी अत्यन्त दुखी हो गयीं उन्होंने उस कठिन तपस्या को विरत करने के लिए ब्रह्मचारिणी देवी को आवाज़ दी उमा, तब से देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्वजन्म का एक नाम 'उमा' पड़ गया था उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था देवता, ॠषि, सिद्धगण और मुनि, सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे अन्त में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा “हे देवी आज तक किसी ने इस प्रकार की ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन पूर्ण होगी भगवान चन्द्रमौलि शिव जी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ”माँ ब्रह्मचारिणी से जुड़ी कई मान्यताएं हैं माँ दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों को अनन्त फल देने वाला है उनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम की वृद्धि होती है सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में होता है इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी, उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्त्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है।

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