*परीक्षा पे चर्चा 2024: स्कूली शिक्षा में व्यक्तित्व, मानसिक स्वास्थ्य और सेहत का समग्र विकास*

परिवेश , 908

*--प्राची पांडे, संयुक्त सचिव, शिक्षा मंत्रालय एंड तारा नोरेम, प्रधान मुख्य सलाहकार, एसएस, शिक्षा मंत्रालय*

आमतौर पर, सैद्धांतिक रूप से हम दबाव अथवा तनाव को दूर करने के मॉडल पर  ध्यान देते हैं जबकि व्यवहारिक रूप से हम तनाव को दूर करने की विभिन्न रणनीतियों को लेकर सलाह देते हैं। बहरहाल, एक महत्वपूर्ण सवाल, कि छात्रों में पढ़ाई को लेकर होने वाले तनाव को दूर करने, उससे निपटने की रचनात्मक रणनीति विकसित करने में कैसे मदद की जाये यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है। ऐसा ही महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि कैसे एक ऐसा वातावरण तैयार किए जाए जिसमें छात्रों को प्रेरित करने के लिए पर्याप्त प्रेरक हों, जहां तनाव की वजह से मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आने से उनके प्रदर्शन पर बुरा प्रभाव न पड़े।  

मानसिक स्वास्थ्य और अच्छी सेहत को प्राथमिकता देने वाला तनाव मुक्त माहौल बनाने के लिये स्कूलों में एक समग्र, उल्लासपूर्ण और छात्र की भागीदारी वाला पाठ्यक्रम और पढ़ाई होनी चाहिये। इसके लिए ऐसा पाठ्यक्रम तैयार करना होगा जो कि संतुलित और आयु के अनुरूप हो। स्कूली शिक्षा राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (2023) में भी कला, शारीरिक शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य पर  खासतौर से जोर देते हुए इसके लिए स्कूल समयसारिणी में समय आवंटन और विशिष्ट पढ़ाई जरूरतों को पूरा करने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा  बुनियादी स्तर की राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (2022) में अच्छा स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती, उसके विकास लक्ष्यों में से एक है। कुल मिलाकर यह ‘‘खेल’’ के साथ-साथ पढ़ाई, समय और घटक संगठन, पाठ्यक्रम संरचना और बच्चे के समग्र अनुभव में वैचारिक, व्यवहारिक और लेन-देन संबंधी दृष्टिकोण के लिए महत्वपूर्ण है। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 छात्रों को खेलकूद, आर्ट क्लब, इको-क्लब, सामुदायिक सेवा से जुड़ी परियोजनाएं आदि में भागीदारी के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, एनईपी 2020 इस बात पर भी जोर देती है कि छठी से आठवीं कक्षा के दौरान प्रत्येक छात्र को राज्य और स्थानीय समुदाय द्वारा चुने गये और स्थानीय कौशल आवश्यकताओं पर आधारित अन्य चीजों के साथ-साथ बढ़ई, बिजली संबंधी कार्य, धातु कार्य, बागवानी और चीनी-मिट्टी बर्तन बनाने जैसे विशिष्ट व्यावसायिक शिल्प कार्यों को देखना, समझना और व्यवहारिक अनुभव प्रदान कराने जैसे मनोरंजक अध्यापन कार्य में भी भागीदारी करनी चाहिये।
 
छात्रों के बस्ते का बोझ कम करने पर ध्यान देते हुए 24 नवंबर 2020 को एक स्कूल बैग दस्तावेज नीति तैयार की गई जिसे राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा लागू किया जा रहा है। इसके अलावा कई शिक्षण संस्थानों ने ‘‘नो बैग डे’’ नीति भी लागू की है जो कि एक निश्चित दिन में छात्रों को अपना स्कूल बैग घर पर छोड़ने के लिये प्रोत्साहित करने की पहल है। 
स्कूलों में सकारात्मक अध्यापन परिवेश बनाने के लिए तनाव प्रबंधन को लेकर अध्यापकों के क्षमता निर्माण को नये जोर-शोर के साथ लागू करने की आवश्यकता है। इसी प्रकार राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने आयुष्मान भारत के तहत स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में ‘‘प्रशिक्षण और संसाधन सामग्रीः स्कूल जाने वाले बच्चों का स्वास्थ्य और तंदुरूस्ती’’ नामक एक संपूर्ण व्यवस्था बनाई गई है।  इसमें एक ‘‘भावनात्मक रूप से स्वस्थ और मानसिक स्वास्थ्य’’  पर एक समर्पित माड्यूल भी शामिल है जो कि अध्यापकों और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और उनकी बेहतरी से संबंधित गतिविधियों को दर्शाता है। एनसीईआरटी बच्चों को भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के साथ-साथ उन्हें डर से उबरने और उनमें मुकाबला करने की क्षमता विकसित करने पर भी ध्यान देता है। इसमें सहायता के लिए शिक्षकों और परामर्शदाताओं की क्षमता सुधार में भी सक्रियता से काम कर रहा है। मार्गदर्शन और परामर्श में डिप्लोमा कोर्स (डीसीजीसी) एक अन्य संसाधनयुक्त पहल है जो कि शिक्षक-परामर्शदाता प्रतिमान का उपयोग करते हुए अध्यापकों को उनके अध्यापन कार्य के अलावा शैक्षणिक, व्यक्तिगत और करियर संबंधी चिंताओं में छात्रों की सहायता करने में सक्षम बनाता है। 

परीक्षा की तैयारी करने वालों के लिए एक मंत्र यह भी है कि ‘परीक्षा आपकी  वर्तमान तैयारी का परीक्षण करती है, आपका नहीं।’’ इस प्रकार एक बहुआयामी रिपोर्ट के माध्यम से छात्र विकास बदलाव मूल्यांकन जो कि प्रत्येक विद्यार्थी की विशिष्टता, सहपाठियों के समर्थन और सलाह को दर्शाता है, और यह आकलन व मूल्यांकन को सकारात्मक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम और सुधार के लिए एक उपयुक्त माध्यम है। 

दुनिया के किसी अन्य हिस्से की ही तरह भारत में भी मानसिक स्वास्थ्य और बेहतर तंदुरुस्ती से सबंधित विषय को स्कूल के समूचे ढांचे में शामिल करना विभिन्न कारणों से महत्वपूर्ण है। स्कूली शिक्षा में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने से सबसे पहले ग्रामीण और शहरी अंतर को दूर करने में मदद मिलेगी और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सभी छात्रों की सहायता तक पहुंच हो। एनईपी 2020 के आलोक में शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्कूली छात्रों के लिए एक मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया गया, जो कि उनके समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और अच्छी सेहत पर जोर देता है। तनाव से अकेलेपन और अलग-थलग रहने से उत्पन्न भावनाओं पर और अधिक प्रभाव पड़ सकता है। तनावमुक्त परिवेश आपस में मेल-मिलाप को बढ़ावा देता है, यह इस बात की गारंटी देता है कि प्रत्येक छात्र चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि, योग्यता अथवा विविधता वाला हो, उसकी परवाह किए बिना वह अपनापन और बेहतर महसूस कराता है। एनईपी 2020 इस दिशा में तनाव और भावनात्मक प्रभावों से निपटने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में एक परामर्श प्रणाली स्थापित करने को प्रोत्साहित करती है। 

आज, बदलते आर्थिक परिवेश और प्रौद्योगिकी के बढ़ने के साथ छात्रों को न केवल शैक्षणिक ज्ञान बल्कि जीवन कौशल की भी आवश्यकता है। प्रौद्योगिकी के उद्देश्यपूर्ण और मध्यम उपयोग से सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा, छात्रों को नकारात्मक प्रभाव से निपटने के लिए जुझारूपन, अनुकूलता और प्रभावी संचार जैसे कौशल से लैस कर सकती है। इसके अलावा, सांस्कृतिक, भाषा संबंधी और सामाजिक-आर्थिक विविधता को ध्यान में रखते हुए यदि मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाती है तो न केवल समावेशिता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी बल्कि सभी छात्र मानसिक तौर पर स्वस्थ होंगे, उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो। शिक्षा मंत्रालय ‘‘मनोदर्पण’’ अभियान के तहत परिवारों, शिक्षकों और छात्रों को कोविड महामारी के दौरान और उसके बाद भी मानसिक स्वास्थ्य व उनकी भावनात्मक बेहतरी के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान कर रहा है। ‘‘मनोदर्पण’’ अभियान में सक्रिय और निवारक मानसिक स्वास्थ्य व तंदुरुस्ती सेवाओं सहित विभिन्न प्रकार की गतिविधियां शामिल हैं जिन्हें अध्यापन प्रक्रियाओं की मुख्यधारा में एकीकृत किया गया है। 

कुल मिलाकर संक्षेप में कहा जाए तो तनाव मुक्त शिक्षा एक सकारात्मक शिक्षण परिवेश के लिये महत्वपूर्ण है जो कि भावनात्मक स्वास्थ्य, शैक्षणिक सफलता और महत्वपूर्ण जीवन कौशल पाने में सहायक है। यह शिक्षा के लिए एक ठोस और संतुलित दृष्टिकोण आधार बनाकर छात्रों को भविष्य के अवसरों और चुनौतियों के लिए तैयार करती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि शिक्षण, प्रशासक, अभिभावक और नीति-निर्माता सभी छात्रों के बौद्धिक, मानसिक स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के लिए तनाव मुक्त शिक्षा परिवेश बनाने को एक साथ आगे आयें। ऐसा ही एक अभिनव संवादात्मक कार्यक्रम है ‘‘परीक्षा पे चर्चा’’ जो कि शिक्षकों, अभिभावकों, छात्रों और समुदायों को एक मंच पर लाता है जहां प्रत्येक बच्चे के विशिष्ट व्यक्तित्व को महत्व दिया जाता है, पोषित किया जाता और प्रोत्साहित किया जाता है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी युवाओं के लिए तनाव मुक्त परिवेश को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ पिछले छह वर्ष से इस अनूठे अभियान को चला रहे हैं। 

(इस लेख में व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

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