अदभुत पर्वत: परियोंवाला पर्वत 

हेडलाइंस , 1150

अमरेन्द्र सहाय अमर 
दुनिया की तमाम संस्कृतियों, कला और साहित्य में कुछ ऐसी रहस्यमय और तर्क से परे चीज़ें हैं जिन्हें हमने देखा तो नहीं, लेकिन जो अनंत काल से हमारी सोच और जीवन की हिस्सा रही हैं. देवदूत, राक्षस, शैतान और परियां उनमें शामिल हैं उनमें से परियों ने हमारी कल्पनाओं को सबसे ज्यादा उड़ान दी है. स्त्रियों की सी शक्ल-सूरत लेकर किसी दूसरे लोक से आने वाली, अपनी जादुई शक्ति के बल पर पंखों से ऊंची उड़ान भरने वाली, छोटे कद और असीम सौन्दर्य वाली शर्मीली परियां हमेशा से बच्चों का ही नहीं, बड़े लोगों और दुनिया भर के साहित्यकारों की कल्पनाओं का भी अहम हिस्सा रही हैं. परी मतलब एक ऐसी अलौकिक प्राणी जो बच्चों को बेहद प्यार करती हैं. उनका मन बहलाने के लिए हाथ पकड़ कर उन्हें रहस्यमय परीलोक की सैर पर ले जाती हैं. बेसहारा, दुखी बच्चों और भले लोगों को मदद और दुष्टों को दंड देती हैं. परियां हर युग में स्त्री सौन्दर्य का प्रतिमान भी रही हैं. 
विज्ञान परियों को मानवीय फंतासी मानता है. ईश्वर, देवी-देवताओं, परलोक, राक्षस, शैतान, प्रेतात्माओं और स्वर्ग-नरक की तरह मानव मन की अनूठी कल्पनाओं में से एक। उसके अनुसार परियों की कल्पना के पीछे आदिकाल से लोगों में चला आ रहा यह विश्वास है कि दुनिया की सभी चीज़ों - हवा, जंगल, पेड़, फल-फूल, नदी, झरनों, पहाड़ों, पत्थरों और यहां तक कि परछाईयों तक में आत्मा है जो हमारे जीवन को प्रभावित और नियंत्रित कर सकती है. कालान्तर में हमें प्रभावित कर सकने वाले प्रकृति के इन सभी अवदानों का लोगों ने मानवीयकरण किया. परियां मानवीकरण की इसी प्रक्रिया की उपज हैं. यह बात सही तो लगती है, लेकिन यह सवाल तो तब भी अनुत्तरित रह जाता है कि परियां अगर वाक़ई कल्पना की उड़ान हैं तो यह कैसे संभव हुआ कि प्राचीन दुनिया में जब लोगों के बीच कोई आपसी संपर्क नहीं था तब परियों की लगभग एक जैसी कथाएं एक साथ दुनिया भर की लोकगाथाओं, गीतों, कल्पनाओं, स्वप्नों और साहित्य का हिस्सा कैसे बन गईं ? परग्रही प्राणियों के शोधकर्ता मानते हैं कि परियां प्राचीन काल में दूसरे ग्रहों से धरती पर आने वाले एलियन थीं जिनकी उड़ने की क्षमता और मानवेत्तर शक्तियों के आगे लोग नतमस्तक हुए कालान्तर में मौखिक परंपरा से परियों के रूपरंग के साथ उनकी दयालुता, निश्छल बाल प्रेम, असाधारण शक्तियों और चमत्कार के किस्से-दर-किस्से जुड़ते चले गए. परामनोविज्ञान मानता है कि परियां हमारी पृथ्वी के वातावरण में रहने वाली दूसरे आयामों की जीव हैं.
उत्तराखंडअपनी सुन्दरता और धार्मिक महत्व के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. लेकिन या बात बहुत कम ही लोग जानते हैं कि यहाँ एक ऐसी जगह है जहाँ परियां निवास करती हैं. हम बात कर रहे हैं खैट पर्वतकी. यह पर्वत समुद्र तल से 10,000 फीट की ऊँचाई पर है . रहस्यमयी खैट पर्वत घनसाली इलाके में स्थित थात गाँव से लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी पर है. कहते हैं खैट पर्वत किसी जन्नत से कम नहीं. लोग कहते हैं यहाँ आज भी लोगों को अचानक से परियों के दर्शन हो जाते हैं. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि खैट पर्वत की परियां गाँव की रक्षा करती हैं. खैट पर्वत इसलिए भी रहस्यमयी माना जाता है क्योंकि यहाँ साल भर फल और फूल मिलते हैं.. अगर इन फल फूलों को कही अन्यत्र ले जाय जाय तो यह जल्द  खराब हो जाते हैं.  खैट पर्वत क्षेत्र में अखरोट और लहसुन की खेती अपने आप होती है. अखरोट के बागन लुकी पीडी पर्वत पर बने माँ बराडी के मंदिर के गर्भ जोन गुफा के करीब ही हैं.ठाट गाँव के पास एक खैटखाल मंदिर है जिसे रहस्यमयी शक्तियोंका केंद्र माना जाता है. आस पास के लोग इसे परियों या आछरियों के मंदिर के रूप में पूजते हैं. हर साल जून के महीने में यहाँ मेला लगता हैऔर परियों के पूजा की जाती है. यहभी  कहा जाता है.परियों को चटकीला रंग, शोर, तेज संगीत पसंद नहीं इसलिए यहाँ यह सब चीजें प्रतिबंधित हैं.अमेरिका की मैसासयुसेट्स विश्वविद्यालय ने इस पर्वत पर एक शोध किया था. इस शोध में उन्होंने पाया कि, यहां कुछ ऐसी शक्ति है, जो अपनी ओर आकर्षित करती है. मान्यता है कि, इस पर्वत पर 9 परियां रहती हैं. जिन्हें स्थानीय भाषा में आछरियां कहते हैं. सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि, यहां अनाज कूटने वाली ओखलियां जो समतल पर बनी होती है, खैट पर्वत पर ये ओखलियां दीवारों पर बनी हैं. सदियों पहले टिहरी गढ़वाल के चौदाण गांव में राजा आशा रावत का राज हुआ करता था. राजा की छह पत्नियां थी, लेकिन उनका कोई पुत्र नहीं था. राजा इससे बेहद बहुत परेशान रहने लगे थे. राजा की परेशानी देखकर उनकी पहली पत्नी ने कहा कि आप राजा हो तो आप  सातवां विवाह कर सकते हो. इसके बाद राजा आशा रावत पास ही के थात गांव गए तो वहां दीपा पवार नाम के एक शख़्स ने उनकी ख़ूब खातिरदारी की.
दीपा पवार ने जब राजा साहब से थात गांव आने का कारण पूछा तो राजा ने कहा, मैं आपकी छोटी बहन देवा से शादी करना चाहता हूं. ये सुन कर पूरा गांव उत्साहित हो उठा. इसके बाद राजा का विवाह देवा से हो गया और देवा चौदाण रानी बन गईं. इसके कुछ समय बाद रानी देवा ने एक के बाद एक पूरे 9 बच्चों को जन्म दिया, जिनका नाम राजा ने कमला रौतेली, देवी रौतेली, आशा रौतेली, वासदेइ रौतेली, इगुला रौतेली, बिगुल रौतेली, सदेइ रौतेली, गरादुआ रौतेली और वरदेइ रौतेली रखा था.  आशा रावत और रानी देवा की ये बेटियां आम बच्चों की तरह नहीं थी, बल्कि चमत्कार से कम नहीं थीं. 12 वर्ष की उम्र तक सभी बेहद सुंदर दिखने लगी थीं. कहा जाता है कि एक रात सभी बहनें गहरी नींद में सोई हुई थीं इस दौरान उनके सपने में सेम नागराज आए और उन्होंने सभी बहनों को अपनी रानी बना लिया. लेकिन जब सुबह उठते ही सभी बहनें जल स्रोत गईं तो उन्होंने देखा कि उनके गांव में अंधेरा पसरा पड़ा है जबकि ऊंचे पर्वतों पर धूप खिली हुई है. सूरज की इसी तलाश में जब सभी बहनें खैट पर्वत पहुंचीं तो आंछरीयानि परियां  बन गईं. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि ये आज भी खैट पर्वत पर परियां बनकर घूमती हैंदरअसल, उत्तराखंड में कुल देवता को प्रसन्न करने की पूजा विधि के दौरान भी राजा आशा रावत और रानी देवा की बेटियों का आंछरी बनाने की ये कहानी उल्लेखित होती है. इसलिए भी इस कहानी को सच माना जाता है और खैट पर्वत को परियां का देश कहा जाता है. 

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